मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी  द्वारा रूपवती की खोज करवाना (कहानी)




  मालवा सुल्तान खिलजी 

                द्वारा 

     रूपवती की खोज

मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी   ने एक दिन अपने विश्वासपात्रों की गोष्ठी में कहा कि, "मैंने इतनी हजार स्त्रियां एकत्र की किन्तु जैसी छवि मेरे हृदय में है उसमें से कोई भी मुझे नहीं मिली।" एक विश्वासपात्र ने निवेदन किया कि, "जो लोग इस कार्य हेतु नियुक्त हैं उन्होंने संभवतः किसी रूपवती को नहीं देखा है और वे उसे नहीं पहचानते। यदि मेरे सरीखे किसी व्यक्ति को यह कार्य सौंपा जाय तो आप की इच्छानुसार पूछताछ करके ले आऊं।" वादशाह (मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी) ने आदेश दिया कि, "मैं तुझसे भी कहता हूं। तू भी खोज करता रह।" वह व्यक्ति विदा होकर चला गया । जब वह चलने लगा तो सुल्तान ने उसे पुनः बुलाकर पूछा कि, "तू मुझे इस बात से संतुष्ट कर दे कि रूपवती किसे कहते हैं।" उसने उत्तर दिया कि, "हे बादशाह !(मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी) दास की बुद्धि के अनुसार रूपवती वह है जिसके किसी अंग के ऊपर भी यदि सर्व. प्रथम दृष्टि पड़ जाय तो वहां से दृष्टि न हट सके। उदाहरणार्थ यदि उसके पांव अथवा हाथ पर दृष्टि पड़े तो इस बात की इच्छा न हो कि उसका मुख अथवा उसकी आंख देखी जाय। यदि उसे पीछे से देखा जाय तो यह हृदय में न आये कि उसे आगे से देखें। दास की समझ से रूपवती ऐसी ही होनी चाहिये।" सुल्तान ने इसे बहुत पसन्द किया और पूछा कि, "इस प्रकार की रूपवती कहां मिलेगी?" उसने उत्तर दिया कि, "मुझे ४ सास का अवसर दिया जाय। जहां कहीं भी मुझे इस गुण से सुशोभित रूपवती मिलेगी, उसे जिस प्रकार भी संभव होगा ले आऊंगा। में समस्त राज्य में चक्कर लगाऊंगा और यदि जीवित रहा तो खाली न आऊंगा।" सल्तान ने आदेश दिया कि, "अच्छा जाओ"। उसने समस्त विलायत में चक्कर लगाया किन्तु ऐसी रूपवती कहीं न मिली। एक दिन वह एक ग्राम में पहुंचा। एक युवती पीछे से दृष्टिगत हुई जिसमें उसकी इच्छानुसार गुण विद्यमान थे। वह उसके समक्ष पहुंचा। उसने देखा कि उसमें वही गुण है। उसने उससे कहा कि, "मैं इस ग्राम में ठहरना चाहता हूं। यहां कोई ठहरने योग्य स्थान होगा?” उसने कहा कि, "क्यों न होगा।" वह उसी स्थान पर ठहर गया। कुछ दिन वहां ठहर कर उसने अपने आप को रोगी बना लिया और बाल कटवा कर कुछ दिन तक वहां ठहरने के पश्चात् उस स्त्री को चोरी से भगा दिया। वह स्वयं वहां कुछ समय तक ठहरा रहा। कुछ दिन उपरान्त वह वहां से चल खड़ा हुआ और जिस स्थान के लिए वचन दिया था वहां पहुंचा। वह उस रूपवती को अपने घर में ले गया। एक मास उपरान्त वह उसे बादशाह  की सेवा में ले गया। वो बादशाह उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उन लोगों को जो उसके परिवार के थे भी (जहां की वह रूपवती थी) इस बात का पता चल गया कि जो व्यक्ति यहां ठहरा हुआ था वह उस युवती को ले गया और वे (युवती तथा पुरुष) मल्दू में है। उसे भी जो रूपमति को चोरी करके लाया था  परिवार वालों के  आने का पता चल गया। वह एक स्थान में जाकर छिप गया और उसने अपने मित्रों से कह दिया कि, "जब इस बात का अन्त हो जाय तो बादशाह की ओर से उन लोगों को तसल्ली  देकर हमें सूचना कर देना। तब मैं आ जाऊंगा।” उसने सुल्तान से उसके लाने के विषय में कहा था कि, "मैं इसे कई हजार देकर लाया हूं।" जब शुक्रवार के दिन बादशाह मस्जिद से वापस जा रहा था तो लड़की के परिवार वालों ने फ़रियाद की और कहा कि, "अमुक व्यक्ति हमारी पुत्री को भगा कर लाया है।" बादशाह के कान में जैसे ही यह बात पहुंची तो उसमें न तो आगे बढ़ने की और न उस स्थान पर ठहरे रहने की शक्ति रही। वह उसी स्थान पर भूमि पर बैठ गया और उसने आलिमों को बुलवाया और कहा कि, “शरा के अनुसार हमारे लिए जो आदेश होता हो उस पर आचरण किया जाय।” जब लड़की के परिवार वालों  ने यह हाल सुना और उन्हें इस बात का पता चला कि वह स्त्री बादशाह के घर पहुंच गई है तो उन लोगों ने कहा कि, "हम लोग उस व्यक्ति के विरुद्ध फ़रियाद लेकर आये थे। हमें इस बात की सूचना नहीं थी की वह रूपमति आप के यहा है । अब हमें इस बात का पता चल गया है कि वह आपकी (बादशाह) की सेवा में है तो हम संतुष्ट है। वह मुसलमान हो चुकी है। हमारे किसी काम की नहीं। हम चाहते थे कि जिस व्यक्ति ने उसे भगाया है उसके प्रति न्याय किया जाय किन्तु अब यह हाल सुनकर हम अपने आपको सम्मानित समझते हैं और संतुष्ट हैं।" आलिमों ने सुल्तान से कहा कि, "जो कुछ भूल में हो जाय वह क्षम्य है, उसका कफकारा अदा कर दिया जाय।" सुल्तान ने कहा कि, "आप लोग मुझे संतुष्ट करने के लिए कोई बात न कह। जो बात शरा के अनुकूल हो मुझे स्वीकार है। यदि मेरी पवित्रता के लिए मेरी हत्या की आवश्यकता भी हो तो उसका शीघ आदेश दें। जब आलिमों ने सुल्तान को विभिन्न मतों से अवगत कराते। हुए सब बात समझा दी तो वह समझ गया। उस समय उसके मित्रों ने उस व्यक्ति को सूचना। दी और वह प्रकट हुआ और सुल्तान के समक्ष उपस्थित हना। सल्तान ने कहा कि दुष्ट ।। तूने हमारे धर्म में विघ्न डाला।" उसने कहा कि, "मैने समस्त राज्य में खोज की और मैं लौट रहा था कि मुझ यह स्त्री इस गण से सुशोभित मिली। 

सुल्तान ने इसके उपरान्त फिर कभी स्त्रियों

                    की इच्छा न की।