जौनपुर के सुल्तान महमूद शर्क़ी को कालपी के युद्ध मे 

सुल्तान महमूद खलजी-I ने बुरी तरह से हराया ओर उस मे सुल्तान के हाथ शर्क़ी का बहुत बड़ा खजाना हाथ लगा चंदेरी से दो कुरोह दूर सुल्तान महमूद खलजी-I
'क़सरे हफ़्त तबक़ा'(कोशक महल) का निर्माण शुरू किया उस जगह का नाम फ़तहाबाद
पड़ा सुल्तान महमूद-I ने पास ही एक तलाब(सुल्तानिया तलाब)ओर उसके पार पर एक भव्य मस्जिद जिसे सुल्तानिया मस्जिद कहते है का निर्माण कराया |

चँदेरी  मे (कोशक महल)क़सरे हफ़्त तबक़ा का निर्माण महमूद खलजी द्वारा कराया गया


विस्तृत नीचे है 

849 हि० (1445-46 ई०) में जौनपुर के हाकिम सुल्तान इबराहीम शर्क़ी का  पुत्र सुल्तान महमूद शर्क़ी का दूत नाना प्रकार की पेशकश लेकर सुल्तान महमूद खलजी की खिदमत मे उपस्थित हुआ। पेशकश पहुंचाने के उपरान्त उसने यह मौखिक संदेश कालपी के शासक नसीर बिन अब्दुल क़ादिर के विषय में प्रस्तुत किया कि, “वह शरीयत के सन्मार्ग से विचलित हो गया है और इल्हाद तथा ज़िन्दिके के मार्ग पर अग्रसर है। उसने रोज़ा नमाज़ त्याग कर मुसलमान स्त्रियों को नृत्य की शिक्षा हेतु हिन्दू नायकों को दे दिया है। क्योंकि सुल्तान होशंग के राज्य काल से कालपी के अधिकारी मालवा के सुल्तान के अधीन होते चले आये हैं  मैंने यह परमावश्यक समझा कि उसके विषय में सर्वप्रथम आपको सूचना भेजी जाय। यदि आपके पास उसको दण्ड देने का समय न हो तो मुझे आदेश दें तो मैं उसे ऐसा दण्ड दूं जिससे अन्य लोग भी) शिक्षा ग्रहण कर सकें।"

      राजदूत को सुल्तान महमूद शाह-I का उत्त

सुल्तान महमूद शाह-I ने उत्तर भेजा कि, "मेरी अधिकांश सेना इधर-उधर के विद्रोहियों को दण्ड देने के लिए गई हुई है। क्योंकि आपने धर्म की रक्षा करना निश्चय किया है अतः आपके लिए यह बात शुभ हो।" उसी सभा में उसने राजदूत को खिलअत तथा वह निश्चित धन, जिसके देने की प्रथा उस काल में थी, प्रदान करके उसे विदा कर दिया। 

  सुल्तान महमूद शर्क़ी  द्वारा कालपी पर आक्रमण

जब राजदूत जौनपुर पहुंचा तो उसने प्रार्थना-पत्र का उत्तर प्रस्तुत किया। सुल्तान महमूद

शर्क़ी ने अत्यधिक प्रसन्न होकर सुल्तान की सेवा में २० हाथी भेजे और एक सेना तैयार करके कालपी की ओर प्रस्थान किया। नसीर अब्दुल कादिर को वहां से निर्वासित

कर दिया।

सुल्तान महमूद का सुल्तान महमूद शर्की को आक्रमण से रोकना

नसीर अब्दुल कादिर ने महमूद शाह को प्रार्थना-पत्र भेजा जिसमें यह लिखा कि, “सुल्तान होशंग (मालवा के सुल्तान)  के राज्यकाल से हम लोग इस समय तक आपके प्रति निष्ठावान रहे। इस समय' सुल्तान महमूद शर्की ने फ़कीर के राज्य का अपहरण कर लिया है। क्योंकि मैं सर्वदा आप ही से सहायता की याचना किया करता था अतः आप ही से सहायता लेने के लिए चन्देरी की ओर रवाना हो रहा हूं।"

 सुल्तान महमूद ने अली खां को सुल्तान महमूद शर्क़ी  की सेवा में पेशकश भेज कर प्रार्थना कराई कि, "क्योंकि नसीर खां बिन अब्दुल कादिर आपके प्रयत्नों के फलस्वरूप अनाचरण को त्याग कर तोबा कर रहा है और शरीअत के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए तैयार है और इस कारण कि सुल्तान होशंग शाह के समय से वह हमसे सहायता लिया करता था, अतः आशा की जाती है कि उसकी तोबा पर ध्यान देते हए आप उसे क्षमा कर देंगे और उसका राज्य उसे वापस कर देंगे।" अली खां के पहुंचने के उपरान्त सुल्तान महमूद शर्क़ी   ने संतोषजनक उत्तर न दिया और टालमटोल करने लगा। 

       सुल्तान महमूद का महमूद शर्की पर आक्रमण

महमूद शाह खलजी ने अपनी मर्यादा तथा पौरुष को ध्यान में रखते हुए नसीर अब्दुल कादिर की सहायता करना निश्चय कर लिया। 2 शव्वाल 848 हि० (12 जनवरी 1445 ई०) को वह चंदेरी की ओर रवाना हुआ। चंदेरी के क्षेत्र में नसीर शाह सेवा में उपस्थित हुआ और विलम्ब किये बिना सुल्तान एरिज' तथा भान्दीर की ओर रवाना हो गया। जब सुल्तान महमूद शर्क़ी  को यह समाचार प्राप्त हुआ तो उसने शहर से निकल कर एरिज के उपान्त में पड़ाव किया। जुनैद खां के पुत्र मुबारक खां को जो अपने पूर्वजों के समय से उस स्थान का हाकिम था बन्दी बना लिया और उसे भी साथ ले लिया। वहां से प्रस्थान करके यमुना नदी के खादर में, जहां मार्ग सकरा था और शत्रु को पार करने की शक्ति न थी, पड़ाव किया। अपनी सेना को चारों ओर से दृढ़ कर लिया। महमूद शाह खलजी ने उसे छोड़ कर कालपी की ओर प्रस्थान किया। वह (शर्क़ी ) भी संतोष को त्याग कर कालपी की ओर रवाना हुआ। इसी बीच में खलजी सेना के वीरों ने उसके शिविर पर आक्रमण करके अत्यधिक धन-संपत्ति प्राप्त कर ली। वह शर्क़ी भी अपने आदमियों की सहायतार्थ पलट कर युद्ध करने लगा। सायंकाल तक युद्ध होता रहा। तदुपरान्त दोनों सेनाओं ने अपने-अपने पड़ाव पर विश्राम किया। वर्षा ऋतु के निकट आ जाने के कारण सुल्तान खलजी कालपी से संबंधित कुछ स्थानों को नष्ट करके फ़तहाबाद लौट आया और वहां 'क़सरे हफ़्त तबक़ा' का निर्माण प्रारम्भ कराया।